भूख और कुदरत
भूख और कुदरत
कुदरत किसी को ,
भूखा नहीं रखती है।
जिंदगी पत्थरों के ,
नीचे रह रहे जीवो का ,
पेट भी बड़ी शिद्दत से भरती है।।
कुदरत किसी को,
भूखा नहीं रखती है।
इंसान की गलतफहमी
आज कोरोना ने दूर कर दी है।
दो रोटी की दौड़ में ,
आज गलियाँ विरान कर दी है।
कुदरत किसी को,
भूखा नहीं रखती।
फिर भी सब खा रहे हैं ।
सब की ऐसी गुजर-बसर कर दी है।
जिंदगी की दौड़ में,
जो पैसा ही समझते थे, सब- कुछ
आज घरों के अंदर ,
जिंदगी की असल कीमत,
ब्यान कर दी है।