बहरूपिया दुश्मन
बहरूपिया दुश्मन
दुश्मन देश से उतरा है
इक अज्ञात मेहमान
न कोई रूप, न कोई आकार
फिर क्यों इसके आने से मचा है कोहराम
हर तरफ सन्नाटा, सूनी-सूनी सड़कें
अनजाना सा भय पसरा है हर तरफ
पल-पल घुट रहा है इंसान, सिकुड़ रही है सासें
सुना है नाम इसका कोरोना है
सूक्ष्म रूप धारण करके
कर जाता है प्रवेश मानव की साँसों में
हजारों इंसानी जिंदगियां निगल चुका है
पल-पल रूप बदलता है बहरूपिया
कई जूझ रहें हैं अभी भी इसके आतंक से
सारा ब्रह्माण्ड जैसे सिमट गया है
इक छोटे से घेरे में, घर में होकर भी <
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अपनों के दरमियाँ हैं मीलों की दूरियां
कभी-कभी होता है अहसास, कहीं ये
मानव को उसके ही किये की सजा तो नहीं
लेकिन नमन है उस धनुर्धर को
जिसने अपने तरकश से
खोज निकाला है इस दुश्मन का तोड़
बस कुछ ही दिन का मुसाफिर है ये धरा पर
बस थोड़ा सा सब्र, थोड़ी सावधानी चाहिए
मौत के मंडराते काले बादलों पर
उम्मीदों के नए रंग भरने है
है यकीं जिंदगी लौटेगी फिर से पटरी पर
अँधेरे ने को छटना हो होगा
कल फिर सूरज निकलेगा कुछ नए अंदाज़ में
बेशुमा खुशियां लेकर हर मानव के लिए ।