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Anshu Shri Saxena

Comedy

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Anshu Shri Saxena

Comedy

भर लूँ आसमाँ मुट्ठी में

भर लूँ आसमाँ मुट्ठी में

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महिला दिवस मनाने को एकत्रित हुईं सुहासिनियाँ,

और करने बैठीं धीर गंभीर गोष्ठियाँ !

मैंने भी किया इक छोटा सा प्रयास,

क्योंकि महिला दिवस का मौक़ा है बेहद खास !


मैंने भी लिख डालीं कुछ एक पंक्तियाँ,

थोड़ी गंभीर तो थोड़ी हँसी की फुलझड़ियाँ 

अग़र आपको पसंद आयें तो बजा दीजिये तालियाँ !

रिश्तों के गुणा भाग में पूरी की पूरी ख़र्च हो जाती हूँ मैं,


सम्पूर्ण अस्तित्व कर देती हूँ इन रिश्तों के नाम मैं !

कभी बेटी , कभी बहू, कभी पत्नी तो कभी माँ

बन ख़ुश होती हूँ,अपनी उपलब्धियों पर......

कुछ भी शेष नहीं बचता, जिसमें तलाश करूँ खुद को मैं !


कभी वक्त की गुल्लक में संजोए थे कुछ पल सिर्फ़ अपने लिये,

न जाने कब वो गुल्लक बिखर गई जीवन की आपाधापी में ! 

कुछ देर ठहर बस अब कुछ पल जीना चाहती हूँ,

अपनी ही क़ैद से थोड़ा सा बाहर निकलना चाहती हूँ !


महिला दिवस पर सोचा, क्यूँ न आज ही से शुरुआत करूँ

ज़रा आजादी का जश्न मनाऊँ, आज किचेन का परित्याग करूँ

सुबह सुबह ही पतिदेव को दे दिया अल्टीमेटम,

आज खाना वाना आप देख लीजिये , 

महिला दिवस है, सो मेरी ड्यूटी ख़त्म !


बेचारे निरीह सा चेहरा बना कर बोले,

क्या खाना सच में नहीं बनाओगी ?

डिनर में क्या हवा पानी से काम चलाओगी ?

मैंने भी तुनक कर जवाब दिया, रोज़ रोज़ मैं खटती हूँ।


और तुम फ़रमाइशों की फ़ेहरिस्त पकड़ाते हो

मेरी जान आफ़त में डाल ख़ुद चैन की बंसी बजाते हो...

साल में एक दिन तो मेरी फ़रमाइशों को पूरा करना ही होगा....

यू ट्यूब से देख कर आज तो खाना तुम्हें ही बनाना होगा !


कोई उपाय न देख कर हुए पतिदेव मजबूर...

दाल कुकर में डाल, हुए सब्ज़ी काटने में मशरुफ !

मुझे बाहर जाने के लिये तैयार देख ,बड़े प्यार से बोले.....

लेडीज़ क्लब जा रही हो तो ज़रा एक बात पता कर आना


“पुरुष दिवस “ कब मनाया जायेगा, ज़रा मुझे भी बताना

मुझे भी साल में एक दिन पूरा अवकाश चाहिये,

अपनी मर्ज़ी से जी पाऊँ ऐसा सिर्फ़ एक दिन मुझे भी चाहिये !

हमको भी पुरुष दिवस ज़ोर शोर से मनाना है,


पुरुषों पर ‘घर में‘ होने वाले अत्याचारों को ज़माने को दिखाना है

अब ये आप बहनों पर निर्भर है,

कब “पुरुष दिवस“ का ऐलान करवाएँगी 

और अपने अपने पतियों को भी एक दिन

कब उनकी मर्ज़ी का दिलवायेंगी।


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