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निखिल कुमार अंजान

Abstract

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निखिल कुमार अंजान

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भोर भई जग मे....

भोर भई जग मे....

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भोर भई जग में

नव ऊर्जा का संचार हुआ

सूरज की किरणों ने

निशा के तम को दूर किया

रात्रि कितनी भी लंबी हो

ढल जाती है 

सूर्य की किरणें 

आशा की नई उम्मीद 

जगाती है

भोर भई जग मे

नव ऊर्जा का संचार हुआ

अब आलस का त्याग कर

कर्म पथ पर बढ़ने हेतु

खुद को अब तू तैयार कर

हर दिन आशा के साथ

इक नया सवेरा होता है

हर बीती रात के साथ

खत्म निराशा का अंधेरा होता है

मंजिल तुझको मिल जाएगी

जीवन की गाड़ी मुश्किल पथ से

धीरे धीरे निकल जाएगी

भोर भई जग मे 

नव ऊर्जा का संचार हुआ

सूरज की किरणों ने 

निशा के तम को दूर किया....



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