STORYMIRROR

Chandra prabha Kumar

Abstract

3  

Chandra prabha Kumar

Abstract

भाव निकुंज

भाव निकुंज

1 min
271

मेरे भावों की धरती पर

     तुम धीरे धीरे आना। 

इस चंचल मन के

     मादक तरंगमय

सपनों से मधुमय हो जाना। 

     मेरे कल्पना लोक में

तुम चुपके चुपके आना। 

      वासंती बयार हो

कलियन पर निखार हो

      तुम धीरे धीरे आना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract