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Chandra prabha Kumar

Abstract

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Chandra prabha Kumar

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भाव निकुंज

भाव निकुंज

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मेरे भावों की धरती पर

     तुम धीरे धीरे आना। 

इस चंचल मन के

     मादक तरंगमय

सपनों से मधुमय हो जाना। 

     मेरे कल्पना लोक में

तुम चुपके चुपके आना। 

      वासंती बयार हो

कलियन पर निखार हो

      तुम धीरे धीरे आना।


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