भाषा उसकी मौन
भाषा उसकी मौन
अपनी व्यथा खुदी से कहता,
आखिर मितरा कौन ?
कागज़, कलम, ना स्याही - दावात,
भाषा उसकी मौन ! !
''तुम कुछ बोले क्या ?'' वह बोला,
मुंह चादर में ढंके ही बोला।
क्या ? सुरसती का आसन डोला,
आजा, लेकर उड़न खटोला।।
सन्नाटी सिलवटों के पीछे
आखिर भाषा कौन ?
कागज़, कलम , ना स्याही - दावत,
उसकी भाषा मौन ! !
नदी उबासी क्यों लेती है,
नाव उलट कर क्यों लेटी है ?
मछली, मचल, इठल, विह्वल है,
प्रलय सी आहट बुन लेती हैं ! !
दबे पाँव सूरज सा उतरा,
जाने आज है कौन ?
कागज़, कलम, ना स्याही - दावात,
भाषा उसकी मौन !!
उलझन में गलियाँ - चौराहे,
कोई किसी को नहीं पुकारे।
कहां छिप गए वे हरकारे ,
चिल्लाते थे सांझ सकारे।।
पसर गए इस सन्नाटे से
धूमिल हुआ है कौन ?
कागज़, कलम ना स्याही -दावात,
भाषा उसकी मौन।।