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Shruti Sharma

Tragedy Others

4.6  

Shruti Sharma

Tragedy Others

भारत के किसान

भारत के किसान

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मजबूरी की कहानी मंजूरी नहीं देती जिंदगानी ,

दास्तां क्या बयां करू,

खुदगर्ज रहूं या दया करूँ,

उठा लूं कलम ,

सब बयां करूँ अंदाजा है उन हाथों का,

छाले घाव व‌ सन्नाटों का,

कैसे किसान रोता है,सबके लिए फसल होता है,

कई बार ऐसा भी होता है,

खुद खाली पेट ही सोता है,

चाहे तो वह भी एक काम करें,

अपने लिए बोए और आराम करें,

मांगो तुम तो तोल भाव बड़े करें,

मगर ऐसा ना वो करता है ,

बंजर जमी को हरा भरा कर ,

अपने देश का पेट भरता है ,

ऐसे ही नहीं वह अन्नदाता बनता है ,


खून पसीने से एक एक बीज बनता है,

चाहे गर्मी की तपती धूप,

हो या सर्दी सिहराने वाली रातें काली हो,

बस

लगन से पसीना बहाता है ,

कभी मौसम की मार पर, आँसू भी बहाता है,

 इस फसल को लेकर ख़्वाब बड़े बुनता है,

वह पल भर में बिखर जाते हैं,

 कर्ज में दबे से रह जाते हैं,


बच्चों को देख झूठा ढाढस दिलाता है, 

अगली फसल पर कपड़ों का आश्वासन दिलाता है,

बीमारी, पढ़ाई बच्चों, की मुंह चिढ़ाती है,

कर्ज की आगोश में जमीदोज हो जाती है,

कैसे मेरा देश महान हो सकता है,

जब तक अन्नदाता बेहाल रह सकता है,

सुकून में कैसे कोई राष्ट्र हो सकता है,

पीड़ा किसान की समझ कर देखिए,

उन्मादों की छोड़ किसानों की सोचिए,

पेट भरा हो तो हर तरफ उजाला है,

वरना तो सब कुछ काला ही काला है,



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