STORYMIRROR

Vikas Sharma

Abstract

3  

Vikas Sharma

Abstract

भाग्य और पुरुषार्थ

भाग्य और पुरुषार्थ

1 min
949

बहुत दिनों से चंचल मन में,

भभक रही थी यह ज्वाला,

भाग्य और पुरुषार्थ में,

कौन है अधिक बल वाला?


कभी मिली जो मुझे सफलता,

अपने पुरुषार्थ से मैंने इसको पाया,

सारी असफलताओं के लिए,

भाग्य को दोषी ठहराया,


यह भ्रम था या था ज्ञान,

भाग्य को मैंने सदा

पुरुषार्थ से तुच्छ ही पाया,


इक क्षण रूककर, जीवन को देखा,

मैंने क्या खोया, मैंने क्या पाया


जब तक आसमान चूम रहा था,

अपने बल पर झूम रहा था,

जितनी ही ऊंचाई थी,

उतनी चोट भी मैंने खायी थी,


जहाँ कहीं भी मैंने खुद को

कमजोर सा पाया,

एक सहारा, भाग्य मुझको नजर आया,


यह भ्रम नहीं, अटल सत्य है,

प्रयासों की कमियों को ढकने को,

लेते हम भाग्य का सहारा,

कर्महीन, जीतविहीन लोगों ने ही,

हमेशा भाग्य को निहारा,

वीरों ने, महापुरुषों ने,

हर सुख का, हर दुःख का,

पुरुषार्थ को ही कारक पाया,


भाग्य का अस्तित्व कहाँ,

पुरुषार्थ ही तो भाग्य को अस्तित्व में लाया।


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

Similar hindi poem from Abstract