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भाग्य और कर्म

भाग्य और कर्म

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भाग्य न कर्मो का बस

पुरुषार्थ होना चाहिए,

धैर्य साहस लक्ष्य का

शब्दार्थ होना चाहिए।


कर्म भूमी विरो के 

पर्याय हेतु ही बनी,

कर्म सेवा जव भी हो

निस्वार्थ होना चाहिए।


ये न सोचो क्या किया

 क्या हमने पाया है,

लोक हित कोई कृत्य हो

परमार्थ होना चाहिए।


हो समर सघर्ष निज

साहस न छोड़ो आस तुम,

प्रेम करुणा और दया

न व्यर्थ होना चाहिए।


निज श्वास की हर आस ये

 उपकार हेतु ही रहे,

शुल पथ हो मगर नहीं

स्वार्थ होना चाहिए।


पंक में खिलता कमल

उपवन को महकाएं चमन

दधिचि सा जीवन हो जो

त्यागार्थ होना चाहिए।


त्याग तपबल दान निज

उर प्रेम करुणा स्नेह हो

धर्म निज हित से परे

कल्याणार्थ होना चाहिए।


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