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aazam nayyar

Abstract

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aazam nayyar

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बेवफ़ा मेरा सनम

बेवफ़ा मेरा सनम

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मुहब्बत से कभी देखा नहीं है!

जाने क्यूं वो होता अपना नहीं है


पराया कर गया वो उम्रभर को 

मुहब्बत का रिश्ता रक्खा नहीं है 


बढ़ेगी प्यार की बातें कैसे फ़िर

इशारा भी कोई उसका नहीं है 


मुहब्बत का उसे कैसे दूं मैं गुल

कभी वो गुफ़्तगू करता नहीं है 


गया वो छोड़कर आज़म नगर को 

यहां दिल मेरा अब लगता नहीं है।

आज़म नैय्यर 


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