बेटियों पर शर्मनाक प्रहार
बेटियों पर शर्मनाक प्रहार
अदल जब मौन बैठा है,
तो झुक कर जुर्म सहने दो,
तड़प उठी है आज़ादी,
बेड़ियों में ही रहने दो।
पर उड़ने को देते,
कतर देते हो उड़ते कतर ही,
कहते हो युग मॉडर्न हुआ,
मोर्डनिटी को तो बहने दो।
कहने को बेटी चाँद सी,
जा पहुँची है वो चाँद पर,
बादल ग्रहण के अब भी है,
बातें हवा की रहने दो।
या तो करो इंसाफ अब,
या सौंप दो अधिकार ये,
रोती है आँसू खून के,
माँ को अदल अब करने दो।