भाग्य भरोसे
भाग्य भरोसे
हाय भाग्य को रोने वाले,
भाग्य भरोसे मत रहिये,
हुए विजेता दौड़ने वाले,
ऐसे बैठे मत रहिये।
कर्म से बड़ा ना शस्त्र कोई,
किस्मत के ओट में छिपें नहीं,
पौरुषता ललकार रही,
दुःख कायरता में मत सहिये।
दिन और रात भी बँधे वक़्त से,
नहीं भाग्य के मातहत है,
सृष्टि को संचारित करते,
कर्मो के चलते पहिये।
अंगारे जो दबे हुये है
फूक मार उड़ जाने दे,
प्रज्वलित हो निज दृढ़ विश्वास
निश्चय बस मन से करिए।
प्रारब्ध की बातें कर के,
ख़ुद से ना अनजान बने,
भाग्य भी मांझी बन जाए,
कर्मो के दरिया में बहिये।
जीवन मक्खन सा चिकना है,
एक दिन ऊपर आएगा,
कर्मो के सुंदर मथनी से,
यथोचित मथते रहिये।