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बचपन

बचपन

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बैठे हैं आज अहम के चश्में सम्हाल कर

मासूमियत स्कूल के बेंच पर रह गई।


अब भी तलाशता हूँ, वो अनसुनी सी बात,

चुपके से कानों में, क्या दोस्त कह गयी।



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