बारिश का कहर
बारिश का कहर
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जरा तो सोचिए कैसे गुज़ारे रात गीली वो,
जो पुल के नीचे ही मज़बूर है, बिस्तर लगाने को
बरखा बस चहिये हर जिंदगी को जिंदगी दे दे,
नहीं बस चाहिये मासूम के, बक्से बहाने को।
अमीरी सो रही आनंद में, रिमझिम फुहारों के,
गरीबी जगती है तन के कपड़े सुखाने को।
सड़क पर भीगता और भागता, ठिठुरन की मज़बूरी,
निकलता है कोई गाड़ी से बस, कीचड़ उड़ाने को।
बरसना मेघ तुम उतना, जितनी के धरती प्यासी हो
कहर बन कर नहीं आना, आशियाना उड़ाने को।
