बेटियों के सम्मान में
बेटियों के सम्मान में
बेटे से वंश है तो बेटी से घर की प्रतिष्ठा व गौरव है,
बेटा कुल का अभिमान है तो
बेटी से होता समाज व राष्ट्र का उत्थान है.
नाज़ करते हैं लोग बेटे पर तो
बेटी उनका गुरूर होती है,
लाड़ कर लो लड़के के कितने भी,
ख्याल रखने वाली लड़की ही होती है .
फिर क्यों ये पुरुष प्रधान समाज
एक नारी को स्वतंत्र रूप से जीने नहीं देता ?
कभी लोग क्या सोचेंगे कभी परिवार क्या सोचेगा
इन बंधनों से ऊपर उठने नहीं देता ?
मान पाता है जिस पुत्री से,
उसी को बोझ समझता है ये समाज
जन्म देती है जो समाज को,
उसी से क्यों जीने का हक़ छीन
भ्रष्ट कर देता उसका आज ?
नारी दिवस तो मनाता है पर नारी की
महत्वता कब समझेगा समाज ?
बेटियों के लिए दिवस तो बना दिया पर उन्हें
पुत्रों के सामान अधिकार कब देगा ये समाज ?
जन्मदात्री को जन्म से ही तिरस्कृत करता रहता है समाज,
कैसी विडंबना है ये,
ना सुरक्षा का कोई आश्वासन ना उनके
अधिकारों की रक्षा का वचन देता कैसे वेदना,
कैसी पीड़ा है ये
जैसे नदी जल के बिन अधूरी है,
वैसे ही नारी के बिन नर की ज़िन्दगी बंजर व बेजान है,
उठ मानव अभी भी वक़्त है सुधर जा,
जान ले अब इस तथ्य को जिस से
रहा तू अब तक अनजान है
बेटे ने चलाया तेरा वंश,
तो बेटी ने बनाया ये समस्त विश्व व समाज है
बेटी को सम्मान देने से ही होगा कल्याण,
फिर क्यों तुझे अब तक बस बेटे पर ही नाज़ है ?