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Neha Soni

Abstract Others

4  

Neha Soni

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बेटियां

बेटियां

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दुनिया से अलग सी होती हैं बेटियां

जीवन के हर पहलू को फूल सा संजोती हैं बेटियां 

पापा की परी , मां की लाड़ली 

सहनशीलता की आदत बचपन से डाल दी 

हर बात को सहकर खुश हो लेती हैं बेटियां 

दुःख हो अगर किसी दूसरे को भी तो रो लेती हैं बेटियां 

इतना कोमल , इतना भावुक हृदय को खुद संजोती हैं बेटियां 

जब उनकी शादी को लेकर होती हैं बतियां 

नापसंद पर भी हां कर देती हैं बेटियां 

किसी को शादी न करवानी तो कह भी नहीं पाती बेटियां 

इस ज़ख्म को अंदर ही सहती हैं बेटियां 

कुछ इस तरह सारे सवाल खुद में रखती हैं बेटियां 

मैं क्यों हो गई बड़ी ?

क्यों ये दुनिया मेरे पीछे पड़ी ?

क्या जुर्म है मेरी इस उम्र का ?

क्यों मिल रहा दर्द बिन मरहम का ?

भेज देना चाहती है मुझे दूसरे के घर ,

क्या यही धर्म है ज़माने का ?

मुझे भी बढ़ना है पढ़कर कुछ करना है , 

क्यों है कुछ सालों तक सीमित मेरी दुनिया ?

अपने समाज , देश के लिए सोचना क्या यही हैं मेरी कमियां ?

न लगाओ पाबंदी मेरी इस उम्र पर ,

खड़े होने दो मुझे अपने पैरो पर ,

नहीं सही जाती छोटी उम्र में शादी की बात , 

मेरा भी उद्देश्य है देश को देना कई सौगात ,

छोड़ दो मुझे खुले आसमान में 

जीते नहीं परिंदे बंदिशों की गहरी खदान में ,

पहुंची है आज की नारी उस चांद तक , 

क्यों नहीं बनाने देती दुनिया मुझे अपनी पहचान तक ?

सोचती हैं बेटियां कि हम बेटियां हैं मां पापा आपकी हमें कठपुतलियां न समझा जाए बिन जज़्बात की ।

युद्ध से लेकर घर संभालने तक आगे खड़ी होती हैं बेटियां 

प्रसव की पीड़ा को भी हंसकर सहती हैं बेटियां 

उठाई जाती है जब उनके चरित्र पर उँगलियां

इस दर्द को भी आँसू पीकर सहती हैं बेटियां 

छोड़ दे अधूरे सफर में हमसफर तो अकेले पालकर भी बच्चों कुछ न कहती हैं बेटियां 

मारपीट, गालीगलौच सब से हर दिन निपटती हैं बेटियां 

इसके बावजूद उफ्फ तक न करती हैं बेटियां 

जब न हो पति तो लकड़ियां तक धोती हैं बेटियां 

जब न हो पैसे कमाने वाला कोई तो खुद मजदूरी करती हैं बेटियां 

जब न हो कोई साथ निभाने वाला तो खुद का साथी बन जाती हैं बेटियां 

यही नहीं होती गाथा खतम बेटियों की 

आ जाए अगर आत्म सम्मान पर बात तो दुर्गा , काली बन जाती हैं बेटियां 

बनानी नहीं पड़ती है लिखनी नहीं पड़ती है 

स्वयं लिख जाती हैं बेटियां।


हर एक लड़की परी होती है ,

लोगों की सोच से हरदम वो बड़ी होती है ,

कोमलता , सहजता और भावुकता

उसके जीवन के हार की लरी होती है ।

चांद जैसी चमकती वो , परियों की भी परी होती है 

बुरे वक्त में भी वो अकेले खड़ी होती है 

लोगों की सोच से हरदम वो बड़ी होती है ।

कितना कहना है , कितना सुनना है हर चीज जानकर पली होती है ।

लड़कियां फूलों सी मुस्कुराती कली होती हैं ,

लोगों की सोच से हरदम वो बड़ी होती है ।

मजदूरी भी करती ,

वो चूल्हे पर जलती ,

तानों से संभलती ,

वह खुद से लड़ी होती है 

हर एक लड़की परी होती है ।

इस परी को रचने वाला एक हमसफर होता है 

जिसे हर वक्त वो अपना सहारा देता है 

इस हमसफर की छाव में खिलती कड़ी होती है 

हर एक लड़की परी होती है ।

बचपन से लेकर यौवन तक कई पहलुओं से आगे खड़ी होती है ,

हर एक लड़की खुद में परी होती है ।


मां मेरा तू ही जग , तेरा दूसरा रूप है मेरे घर 

एक मां मेरी है जिसने जन्म दिया एक मां वो है

जिसने मुझे जन्म के साथ भेजा है , मां तू ही है मेरा सब 

तेरी वो मुस्कान , छेड़े सातों सुर के तान  

तेरी वो अँखिया मां चमकती हैं 

भक्तों की भावनाएं उमड़ती हैं 

मां तू काली तू ही दुर्गा , तू बसी मां हर एक दरगाह 

तू ही पार्वती तू ही चांडाली 

तेरी कृपा से भरती दीन दुखियों की गोद खाली 

तू न आने दे दुख किसी पर तू मां सबकी रखवाली 

तू ही दुर्गा तू ही काली 

मां तेरी अद्भुत काया

करे दूर मोह माया 

मां तेरे बच्चे हम सब तू ही अब रक्षा कर 

तू सिखा मां हर नारी में तू है 

तू भोले की पार्वती है तो कभी काली भी है 

तू ही मां हम सब पर कृपा करने वाली है 

तेरे से जगती हर एक नारी है 

तुने सिखाया कि नारी न हारी है 

तू दुर्गा तू ही काली है ।

तेरे द्वारे नाचे सब तू खुशियां देने वाली है 

तू ही दुर्गा तू ही काली है ।



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