बेटी
बेटी
सुबह होते ही जिम्मेदारियां दरवाजा खटखटाती हैं,
सच में मैं भी इंन्सान हूं या नहीं?
हथेली पर कुछ सिक्के रखकर सब चले जाते हैं,
मेरे भी कुछ ख्वाब हैं या नहीं?
मेरे सपनों का आप चुल्हा जलाते हो,
मेरी भी कुछ इच्छाये हैं या नहीं?
संस्कार के नाम पर घर में कैद कराते हो
मेरी भी कोई जिंदगी है या नहीं?
घर के सारे कायदे-कानून मुझपर लगाये जाते हैं,
मुझे भी कुछ अधिकार हैं या नहीं?
कभी हाथ उठाते हो,कभी दूर बिठाते हो
आपकी कोई बेटी हैं या नहीं?