बेटी
बेटी
फूल नही चिंगारी है,
आंगन की किलकारी है,
घर की शान हमारी है,
एक बेटी सौ बेटों पर भारी है।
बेटी को बेटी ही रहने दो,
बेटों से मत आंको तुम
जगत जननी पार्वती है
ये है तो धरा,गगन है
दो हिस्सों में मत बांटो तुम।
देना है अधिकार अगर तो,
उसके जन्म पर खुशियां बांटो तुम
दहेज लोभियों के हाथों से,
बेटियों को बचा लो तुम,
बाबुल की बुलबुल है जीवन का भार नही।
हाथों में कलम की ताकत,
माथे से शिकन हटा दो तुम
हो आजाद ख़यालो से
ऐसा मौहाल बना दो तुम
गली, सड़क, मोहल्ले पे
जो चील की नजर रखते हैं
ऐसे लोगो के लिए तलवार पकड़ा दो तुम
बेटी है नाजुक पर फौलाद बना दो तुम।
भार ना बने कोई बेटी,
बस इतना भान रहे,
संस्कार, मर्यादा बेटों को भी दे दो तुम।।