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Rakesh Sahu

Abstract

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Rakesh Sahu

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बेटी

बेटी

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कसूरवार तो नहीं किसी की

फिर भी गुनहगार हूं,

सिकायत तो नहीं किसी से,

फिर भी वही लाचार हूं ।

आजादी तो नहीं है जिंदेगी में

आज भी वही जंजीरों से बंधी हूं।

बोझ तो नहीं किसी पर

फिर भी अपनों के लिए परायी हूं,

क्यूंकि में एक बेटी हूं ।


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