बेशर्मी वाली रात में ,
ना जाने कितनी बार हुआ ,
गिन - गिन के दम निकल गया ,
जब इश्क उनके साथ हुआ |
कभी हौले से वो मुस्कुराये ,
कभी मदहोशी में हम घबराये ,
वो धीरे - धीरे करते गए ,
हमे बाद में सब ज्ञात हुआ |
पहले दर्द हुआ थोड़ा मीठा ,
फिर दर्द हुआ कयामत तक ,
फिर आदत सी होने लगी ,
जब घर्षण उनके साथ हुआ |
कई बार सुनी कानों में चीख ,
कई बार सहती रही आपबीत ,
वो पहली रात का था मधुर गीत ,
जब उनपर पूरा ऐतबार हुआ |
वासनाओं के छोर में जब ,
हम पूरी तरह लिपट से गए ,
तब रात भी बेशर्म होती गई ,
गिनतियों का पर्दाफाश हुआ ||