बेनूर
बेनूर
मैं...देखता हूं,
आकाश में चमकते...
असॅंख्य-अनगिनत, सितारे।
अपनी ही...
टिमटिमाहट में मग्न।
मानो...
काली चादर पर,
मोती जड़े हों।
तब...
मैं, तुम्हारी तरफ घूमता हूं,
तेरी ऑंखों में झांकता हूं,
और...
सोच में पड़ जाता हूं,
कि 'उसने'...
किस प्रकार,
इस, सब का..
समन्वय किया होगा।
एक जोड़ी ऑंख...
और असॅंख्य, टिमटिमाते सितारे।
मैं..
फिर घूमता हूं,
आश्चर्य के सागर में..
डूब जाता हूं,
और सोचता हूं, कि
वह...
जिसे हम...
सर्व कला सम्पूर्ण,
सर्व गुण सम्पन्न मानते हैं,
जिसने..
अपनी सृष्टी को,
सुॅंदर बनाने के लिए,
आकाश में,
असंख्य जगमगाते...
सितारों की रचना की,
किस प्रकार...
क्यों...
इतनी बड़ी भूल वह कर बैठा?
तुम्हारी ऑंखों में,
ज्योति डालनी भूल गया,
और तुम्हें ...
अन्धा बना दिया।
अनर्थ - घोर अनर्थ।
मैं...
फिर घूमता हूं,
अपने अंतर्मन में झांकता हूं,
और सोचता हूं...
इस विसंगति के प्रति...
इस अनर्थ के प्रति...
क्या हम कुछ नहीं कर सकते,
कुछ भी नहीं कर सकते?
यह शरीर तो, नश्वर है...
न सही अभी,
मरणोपरांत तो..
नेत्रदान कर,
केवल एक नहीं,
बल्कि दो अन्धों को,
ज्योति प्रदान कर,
उसकी भूल का,
सुधार कर सकते हैं।
आओ...
नेत्रदान का संकल्प लें।