वजूद

वजूद

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मैं स्त्री हूँ मैं शक्ति हूँ मैं प्राणी हूँ

मंच पर दहाड़ कर घर आई हूँ

सहमी हुई हूँ कुछ घबराई हुई हूँ

न जाने वो जोश कहीं खो आई हूँ |


मैं स्त्री हूँ मैं शक्ति हूँ मैं प्राणी हूँ


चेहरा जो मंच पर दमक रहा था

लबों से स्वर लहरी बह रहे थे

शब्द मोती से चमक रहे थे

तालियों के करतल ध्वनि रिझा रहे थे

घर के दहलीज़ पर न जाने गुम हो गए


मैं स्त्री हूँ मैं शक्ति हूँ मैं प्राणी हूँ


उड़ना घर की रीत नहीं

झुकना ही मीत सही

शालीन रहो न गाओ नया गीत कोई

सुनो ,न सुनाओ राग नयी |


मैं स्त्री हूँ मैं शक्ति हूँ मैं प्राणी हूँ


दहलीज़ के अंदर ही भाती हो

मौन रहो आवाज़ क्यों उठाती हो

कर्तव्यों का पालन सर्वोपरी हो

घर में ही तुम सजती हो |


मैं स्त्री हूँ मैं शक्ति हूँ मैं प्राणी हूँ


माँ,तुमने जो गहने दिए थे उनका कोई मोल नहीं

असली गहने जो तुमने पहन रखे थे

सब्र के झुमके ,चुप्पी के हार

सहन के नथ ,संतोष के पायल

उन आभूषणों को पहनना सीख लिया है |


मैं स्त्री हूँ मैं शक्ति हूँ मैं प्राणी हूँ


पाषाणों में नवांकुर उगाऊँगी

सीमा रेखा खुद तय करूँगी

ख़्वाबों को नया आयाम दूँगी

सम्मान के महि से नसीब लिखूँगी

नयी सदी की स्त्री बन ,तूफ़ानों से लड़ूँगी |


मैं स्त्री हूँ मैं शक्ति हूँ मैं प्राणी हूँ ।



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