एक लड़की
एक लड़की


हाँ हूँ मैं एक लड़की,
थोड़ी सी हूँ मैं ठरकी,
जो बात बात पर है भड़की
क्योंकि बात करते हैं
ये वजूद मिटाने की
प्रश्न करते हैं ये
अस्तित्व समझाने की
काटते हैं पंख फैलाने को,
रोकते है आसमान को चाहने को,
टोकते है अपना नाम बनाने के,
लड़की हूँ तो क्या हुआ
मैं भी एक इन्सान हूँ,
इम्तहान नहीं तेरा,
तेरी ही संतान हूँ मैं।
क्यों हो तुम मुझे रोकते
सपनों को मेरे तुम तोलते।
लड़की है तू,
लड़की होती है पराई,
हाथ पीले कर जल्द
कर दो इसकी विदाई,
विदाई, विदाई,
विदाई, विदाई
विदाई घर से,
विदाई अपनों से,
विदाई अपने सपनों से,
हाँ माना थोड़ा risk है पर
कहानी में थोड़ा twist है भाई
तो जरा गौर कर,
ध्यान दे, कान लगा,
अब तू सुन मेरी बात को
बहुत हुई ये रीत दुनिया की,
मै नहीं हूँ प्रीत अपने साजन की
अब मैंने है ये ठाना
रूढ़ीवादी सोच को है तोड़ना,
हाथ से निकल कर हाथ
फैला आसमान नापना है,
अपने सपनों को
सच कर दिखाना है,
राह अग्नि पथ है
तो दाँव है अंगारे
जो आगे जल कर
निखरते हैं सारे
नहीं हूँ चुप कोई
अत्याचार सहने को,
नारी नहीं काली हूँ,
महाकाली हूँ मैं,
नीले आसमान पर
छाई लालिमा हूँ मैं।