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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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बेहतरीन पल

बेहतरीन पल

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न तो थे आप मेरे माता - पिता ,यह जानता है सारा ही ज़माना।

पर मेरे लिए आप इससे कहीं बढ़कर थे, बस मैंने ही देर में पहचाना।


वह दिन आजीवन रहेगा याद, उसे सकता हूॅ॑ कैसे मैं भूल ?

देर काफी हो चुकी थी, बरसात का मौसम था और मुझे जाना था स्कूल।

गाॅ॑व से जाने वाले साथी सारे जा चुके थे , और अब तो मैं ही अकेला था।

मैं नन्हा सा बच्चा और रास्ते में , भरे दो बरसाती नालों का बड़ा झमेला था।

ऐसा लगने लगा था कि अब न हो पाएगा, आज के दिन स्कूल मेरा जाना।

न तो थे आप मेरे माता - पिता, यह जानता है सारा ही ज़माना।

पर मेरे लिए आप इससे कहीं बढ़कर थे, बस मैंने ही देर में पहचाना।


आपकी उम्र थी काफी ज्यादा , और शरीर भी था काफी ही कमजोर।

लेकिन आपने मेरी चिंता में , अपनी ओर किया न तनिक भी गौर।

आधी दूरी पर है जो बरसाती नाला, उसके पार देना था मुझे छोड़।

 उसके बाद आप आ जाएंगे वापस , और मैं विद्यालय के लिए जाऊंगा दौड़।

पर इस बरसाती नाले को पार कराते समय ,अगले नाले में पानी का अनुमान जाना।

ऐसी विषम परिस्थितियों में आपका स्कूल जाने का निर्णय , मैंने नहीं जीवन भर भुलाना।

न तो थे आप मेरे माता -पिता , जानता है सारा ही ज़माना।

पर मेरे लिए आप इससे कहीं बढ़कर थे,बस मैंने ही देर में पहचाना।


अभी नाश्ता भी आपने किया नहीं था,बस किया था स्नान -ध्यान और पूजा।

नाश्ता छोड़ -छाड़ दिया और ,लिया हाथ में मेरे संग स्कूल जाने का काम दूजा।

पूरे वस्त्र भी तो उचित ढंग से, नहीं धारण कर पाए थे आप।

रास्ते का मौसम था बहुत ही अच्छा, लुभावना और सुहाना

जीवन की मेरी यह बेहतरीन याद सदा रहेगी, उस दिन मुझे स्कूल में पहुॅ॑चाना।

न तो थे आप मेरे माता-पिता, जानता है सारा ही ज़माना।

पर मेरे लिए आप इससे कहीं बढ़कर थे ,बस मैंने ही देर में पहचाना।


आप तो थे मेरी मॉ॑ के प्यारे पिता ,अर्थात मेरे पूज्य नाना।

आजीवन न भूलूॅ॑गा तुम्हें , भूलूं चाहे ईश्वर या पूरा ही ज़माना।



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