बेचारा दिल
बेचारा दिल
धड़कता है रात-दिन
साँसें चलाने के लिये
पर रहम न कोई करता
अविरल चलने के लिये।
सुकून से सोते हो तुम
पर वह कभी न सोता
इंजन हैं शरीर रूपी रेल का
मृत्यु पर ही रुकता।
धड़कता है रात-दिन
साँसें चलाने के लिये
पर रहम न कोई करता
अविरल चलने के लिये।
सुकून से सोते हो तुम
पर वह कभी न सोता
इंजन हैं शरीर रूपी रेल का
मृत्यु पर ही रुकता।