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अनिल कुमार निश्छल

Drama

4.4  

अनिल कुमार निश्छल

Drama

बेच देते हैं

बेच देते हैं

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चंद कागजों की ख़ातिर ईमान बेच देते हैं,

कुछ सिरफिरे दुनिया में संतान बेच देते हैं।


अब आबरूअस्मत की फ़िक्र कहाँ किसको,

यहाँ मौका मिलते ही आन बेच देते हैं।


निकले गर स्वारथ जरा-सा कहीं भी कभी भी,

नहीं चूकते फिर तो भगवान बेच देते हैं।


देशद्रोहियों के; अक्सर मजहब नहीं होते,

मिलकर दुश्मनों से देश की शान बेच देते हैं।


बने फिरते हैं कुछ अपने मुँह मियाँ मिट्ठू,

धीरे-धीरे लोग ऐसे पहचान बेच देते हैं।


नशाखोरों को कहाँ किसी से कभी हमदर्दी,

कभी-कभी अपने दिल के टुकड़ों (परिवार)

के अरमान बेच देते हैं।


कुछ अपने अपनों को पहचानते तक नहीं हैं यहाँ,

कुछ ग़ैरों की ख़ातिर अपनी जान बेच देते हैं।


दर्द बराबर होता है चाहे अमीर को हो या गरीब को,

कुछ लोग पैसों के गुरूर में अंदर का इंसान बेच देते हैं।


ऐहतियात बरतते हैं कुछ रिश्तों को संजोने के लिए,

कुछ सरे आम सभा में अपना मान बेच देते हैं।


आपसी कौमी एकता भाईचारे को बनाए रखना "निश्छल'',

कुछ लोग हिन्दू तो कोई मुसलमान बेच देते हैं।


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