बेबस मजदूर
बेबस मजदूर
वक्त और हालात के आगे मजबूर है
आज कितना बेबस मजदूर है
रोजी- रोटी के खातिर
सदा रहता अपनों से दूर है
आज कितना बेबस मजदूर है।
अपनों की खुशियों के खातिर
सब कुछ करने को मजबूर है
आज कितना बेबस मजदूर है।
दिन-रात करता ये कमरतोड़ मेहनत
फिर भी मिलता न फल अनुकूल है
आज कितना बेबस मजदूर है।
कुदरत के कहर के आगे
पलायन को मजबूर है
भूखा- प्यासा दिन-रात ये चल रहा
मंजिल न जाने अभी कितनी दूर है
आज कितना बेबस मजदूर है।
सूनी आंखों में सजाए थे जो सपने
अचानक हुए सब चूर-चूर हैं
आज कितना बेबस मजदूर है।
