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Arun Saini

Tragedy

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Arun Saini

Tragedy

बदलती जीवन शैली

बदलती जीवन शैली

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खाकर रूखी सूखी मस्त रहा करते थे,

आज खाकर पिज़ा-बर्गर गुब्बारे से दिखते हैं।


ना गर्मी का डर था, ना सर्दी का

दिन भर खेला करते थे,

आज घर से बाहर निकलते ही

हाए-हाए उफ्फ-उफ्फ किया करते हैं।


दादा-दादी से सुनते किस्से कहानी

दुनिया भर की बाते किया करते थे,

आज डालकर कान में बिजली का सा तार

सिर को हिलाया करते हैं।


ताज़ा फल और हरी सब्जियां

खूब मज़े से खाते थे,

आज फल कराकर रंग-रोगन और सब्जिया

लगवाकर इंजेक्शन

बाज़ार में आया करते हैं।


बैठ बुजुर्गो के चरणों मे

चाय की प्याली पिया करते थे,

आज मिलाके कंधे से कंधा,

लिए हाथ मे जाम "चीयर्स" किया करते हैं।


सबकी करते थे इज़्ज़त,

माता-पिता और गुरु के साथ

"जी" लगाया करते थे,

आज सबको मानते एक समान और

रिश्ते के साथ "यार" लगाया करते हैं।


ना था किसी बीमारी का डर

शुद्ध हवा में साँस लिया करते थे,

आज शुद्ध हवा मिलती पैसो में और

बछड़े का "छीक्का" सा मुँह पर लगाये फिरते हैं।


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