STORYMIRROR

सुरभि शर्मा

Action Classics

4  

सुरभि शर्मा

Action Classics

बदलेंगे फिर ये दिन

बदलेंगे फिर ये दिन

1 min
318

खुशनुमा ठण्डी हवाओं के बीच

कभी उठ जाती है आँधी

कभी आ जाते हैं चक्रवात

कभी कड़क जाती है दामिनी 

कभी टूट जाता है नदियों का बाँध 

अवधि कभी पाँच सेकंड

कभी पन्द्रह मिनट


कभी कुछ दिन 

कभी कुछ महीने 

पीछे छोड़ जाते हैं अपने 

कुछ ध्वस्त वृक्ष 

कुछ बाधक मार्ग 

कुछ उड़े हुए छप्पर,... 

कुछ उजड़े खेत 


प्रकृति खोती है अपना संयम कभी - कभी 

अपने ऊपर हुए हिंसा से 

दिखाती है अपना क्रोध कुछ कुछ समय पर 


 फिर छँटते हैं धीरे - धीरे काले घने बादल 

चमकती है धूप 

उदय होता है एक नया सवेरा।


इस बार प्रकृति का संयम नहीं खोया 

उसके सब्र का बाँध टूटा है 

आहत हो मनुष्य के अभिमान से 

उसने धरा है रौद्र रूप 

रत्नगर्भा का हमने चीर हर 

उसे जो क्षति पहुँचाई है 

सिलिये फिर से अचला का आँचल 


वसुंधरा माँ है पिघलेगी फिर से 

देगी आश्रय हमें फिर से अपनी गोद में 

हाँ, इस अवधि में ध्वस्त होगा हमारा अभिमान 

ध्वस्त होंगी बहुत सी जिन्दगीयाँ 

रूठा मौसम मान नहीं रहा 

उस पर विजय पाने की ललक छोड़िये 

और हाथ जोड़ उसकी महत्ता खुद पर 

स्वीकार कीजिए ! 


थमेगा ये बेरंग दौर 

और लिखेगी कलम फिर से 

सुकून और प्रेम भरे कुछ गुनगुनाते गीत।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action