बचपन
बचपन
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क्या खूब दिन थे
मेरे यारों के साथ
कभी छुपते थे अंधेरों के पार
आहट से जान जाता था वह बचपन का यार
पापा की ओ मार
मां का प्यार
बहन के साथ झगड़ा
उसके बाल खींच आना
मासूम सा चेहरा लेकर बैठ जाना
एक टॉफी में फिर से उसको पटाते थे यार
कितना सुहाना बचपन
था मेरा वह यार
दोस्तों के खेतों में जाना
अमरुद को तोड़कर खाना
तोड़कर गन्ने चोरी से भाग जाना
दादी की कहानी
रात को डर जाना
मां की गोद में
थक हार कर सो जाना
ना खाने का बहाना
मां को हर रोज सताना
पापा का मारना
मां का बचाना
बारिश की बूंदों संग नाचना
कागज की नाव को बारिश में नहाना
हर गली को दौड़ के एक चक्कर लगाना
दोस्त की साइकिल पर से गिर जाना
लगा है पांव को सबसे छुपाना
कितना था प्यार
कितना था खुश
मेरा मासूम चेहरा वही भूल आना
कितना प्यारा था
बचपन ओ मेरे यार