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Divesh Chavan

Classics

4.0  

Divesh Chavan

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बचपन

बचपन

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672


क्या खूब दिन थे 

मेरे यारों के साथ


कभी छुपते थे अंधेरों के पार 

आहट से जान जाता था वह बचपन का यार


पापा की ओ मार 

मां का प्यार

बहन के साथ झगड़ा 

उसके बाल खींच आना

मासूम सा चेहरा लेकर बैठ जाना 

एक टॉफी में फिर से उसको पटाते थे यार 

कितना सुहाना बचपन 

था मेरा वह यार


दोस्तों के खेतों में जाना 

अमरुद को तोड़कर खाना

तोड़कर गन्ने चोरी से भाग जाना


दादी की कहानी 

रात को डर जाना 

मां की गोद में 

थक हार कर सो जाना


ना खाने का बहाना 

मां को हर रोज सताना 

पापा का मारना 

मां का बचाना


बारिश की बूंदों संग नाचना 

कागज की नाव को बारिश में नहाना 

हर गली को दौड़ के एक चक्कर लगाना


दोस्त की साइकिल पर से गिर जाना 

लगा है पांव को सबसे छुपाना


कितना था प्यार 

कितना था खुश 

मेरा मासूम चेहरा वही भूल आना 

कितना प्यारा था 

बचपन ओ मेरे यार


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