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Navya Bhilatiya

Classics

5.0  

Navya Bhilatiya

Classics

बचपन

बचपन

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कहीं खो से गए है वो दिन

जब हम मासूम थे।

जब फ़िक्र थी तो बस

खेलने जाने की

जब हमारा बचपन था

हमारा बचपना था !


जब बारिश में नाव तैरा

कर भी खुश थे

जो मिट्टी से लिपट कर

भी खुश थे।


जब किसी चीज़ की चिंता

नहीं थी

मन तितली की तरह था

कभी यहाँ तो कभी वहाँ

आज हम इतने बड़े हो गए

की बारिश को कोसते हैं।


मिट्टी को पौंछते हैं

और फ़िक्र तो ना जाने

कहाँ कहाँ की पाल लेते हैं

आज हम इतने मजबूर हो

चुके हैं कि हम हमारा

बचपना खो चुके हैं।


अब मन तितली की

तरह नहीं है

अब तो मन में अहंकार

भर चुका है।


अब मन कहीं नहीं

बातें कहीं की कहीं

चली जाती है

मन तो वही है।


बारिश भी वही है

मिट्टी भी वही है

और मिट्टी की खुशबू

भी वही है।

बस कहीं खो से गए हैं

वो दिन।


क्योंकि हम तो वही है

कहीं खो गए हैं वो दिन !


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