The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW
The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW

Navya Bhilatiya

Classics

5.0  

Navya Bhilatiya

Classics

बचपन

बचपन

1 min
295


कहीं खो से गए है वो दिन

जब हम मासूम थे।

जब फ़िक्र थी तो बस

खेलने जाने की

जब हमारा बचपन था

हमारा बचपना था !


जब बारिश में नाव तैरा

कर भी खुश थे

जो मिट्टी से लिपट कर

भी खुश थे।


जब किसी चीज़ की चिंता

नहीं थी

मन तितली की तरह था

कभी यहाँ तो कभी वहाँ

आज हम इतने बड़े हो गए

की बारिश को कोसते हैं।


मिट्टी को पौंछते हैं

और फ़िक्र तो ना जाने

कहाँ कहाँ की पाल लेते हैं

आज हम इतने मजबूर हो

चुके हैं कि हम हमारा

बचपना खो चुके हैं।


अब मन तितली की

तरह नहीं है

अब तो मन में अहंकार

भर चुका है।


अब मन कहीं नहीं

बातें कहीं की कहीं

चली जाती है

मन तो वही है।


बारिश भी वही है

मिट्टी भी वही है

और मिट्टी की खुशबू

भी वही है।

बस कहीं खो से गए हैं

वो दिन।


क्योंकि हम तो वही है

कहीं खो गए हैं वो दिन !


Rate this content
Log in

More hindi poem from Navya Bhilatiya

Similar hindi poem from Classics