वक़्त
वक़्त
देखा ना कभी पीछे मुड़ कर
पर आज भी उसकी तस्वीर देखती हूँ
क्यों आज भी वो याद आता है
क्यों हर किसी में वो नज़र आता है
कैसे उसे बताऊँ की आज भी वो ही है
उसी पर मरती हूँ
क्योंकी बहुत पहले मैंने ही करा था उसे खुद से दूर
कहा था चले जा मुझसे दूर
क्यों वो है तो लगता है जिंदगी है
क्यों वो ना हो तो लगता है व्यर्थ है जीना
आज कई दोस्त है मेरे
हाँ बहुत ऐसे भी जो मुझे पसंद आए
और ऐसे भी जिन्हें मैं पसंद आई
पर वो तेरी कमी ना पूरी कर सके
और ना कर सकते है
क्योंकी तू वो है जिसकी खामियों से भी मुझे प्यार है
और वो वो है जिनकी अच्छाईयों से
चाह कर भी प्यार नहीं होता
सोचा खुद को तुझसे दूर कर लूँगी
तो सब ठीक हो जाएगा
पर क्या पता था
जिंदगी अपना खेल हर वक़्त खेलती है
तुझे मुझसे दूर जाने नहीं देती
मुझे तेरे पास आने नहीं देती
पर जिंदगी को भी क्या बोलूँ
कसूर तो वक़्त का है
जो दो सही लोग गलत समय मिल गए
इसलिए तो कर दिया तुझे खुद से दूर
ताकि किसी और तारीख को हम मिलें
तब शायद वो वक़्त सही हो!