बचपन
बचपन
वो बच्चा कूची चला रहा था,
जिंदगी के कैनवास पर रंग सजा रहा था
समझदारी का चोला ओढ़
दबा दिया उसे किताबो के बोझ तले,
छीन कर बचपन की खिलखिलाहट,
बने तुम समझदार बड़े,
शिक्षक बने उपदेशक बने
क्या कभी विद्यार्थी बने
वह बच्चा यही सिखा रहा था,
जिंदगी के मायने बता रहा था,
हम चले समझदार बनाने,
पर खुद नासमझ ही रहे
शिक्षक का कर्तव्य अनोखा,
नित प्रतिभाओ का सृजन करे
अवसादों से कर दूर सबको,
सृजन का एक गीत रचे
हर जीव हैं प्रतिभाशाली,
सदा यह स्मरण रहे
जीने दे हम वो बचपन,
तो जीवन सदा खुशहाल रहे!