बचपन
बचपन
बचपन के दिन भी क्या दिन थे।
ना थी कोई फिक्र बेफिक्री के दिन थे।
खेल खिलौनों का साथ था
गुड़ियों का संग दिन रात था।
खेल खेल मे दिन कैसे कट जाता था।
सखियों संग रहने मे मजा आता था।
बात बात मे रूठना मनाना होता था।
हर दिन खेल नया सुहाना होता था।
माँ पापा का कितना लाड़ था।
रोज हमारी फरमाइशों का अंबार था।
अब सब संगी साथी छूटे हैं।
खेल खिलौने भी जैसे रूठे हैं।
जिम्मेदारी के चक्कर में हम कहीं खो गए।
क्यों हम इतनी जल्दी बड़े हो गए।