बचपन सुहाना
बचपन सुहाना
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बचपन की यादों ने
मन खुश कर दिया
सोचने पर मजबूर कर दिया
वाह! बचपन के दिन भी क्या दिन थे ।
स्कूल जाना !
वाह!
वो भी मजे!
गानागाकर तख्ती सुखाना
कलम से सुन्दर लिखना
जी की निब से कमाल ढाना।
आधी छुट्टी में
बुड्डी के बाल खाना
इमली के चटकारे लेना
संतरे की गोलियाँ खाना
गुड़ गट्टा चबाना व दाँतो से निकालना ...
साइनेटाइजर अपना कुरता
बस हाथ पौंछा व खा लिया
R O नहीं ,कुएँ ,बौड़ी ,नदी सब हैल्दी
कितने प्यारे थे वो स्कूल के दिन!!
पल में कटी ,पल में बट्टी
बैंच नहीं, पर दरी पर ही सबसे आगे बैठना
सबसे अच्छे दोस्त के इंतज़ार में लेट होना ....
न शिकवा न शिकायत
फुल मस्ती बस...
दोस्तों को बचाने को झूठ भी बोलते
पकड़े जाने पर डाँट भी खाते
पर....
गुरू को भगवान ,दोस्तों को जान मानते।
न कोई छल न कपट
साफ दिल स्पष्ट
एक दूसरे पर देते थे जान
खेल के पीरियड़ में मचाते धमाल।
बहुत याद आता है वो स्कूल का टाइम
काश!लौटा लाए कोईगुरू को भगवान ,दोस्तों को जान मानते।
न कोई छल न कपट
साफ दिल स्पष्ट
एक दूसरे पर देते थे जान
खेल के पीरियड़ में मचाते धमाल।
वो स्कूल का जमाना..
वो बचपन सुहाना..