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Almass Chachuliya

Abstract

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Almass Chachuliya

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बचपन से पचपन तक

बचपन से पचपन तक

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बचपन का वो सफर भी अनोखा था

खुशियों से भरा वो ज़माना था

ना किसी से कोई शिकवा ना गिला था

वो बचपन सुकूनों वाला था

ना रूठने का कोई बहाना था

दिल बड़ा ही नादान था

कुछ पाने की ना चाहत थी

दोस्तों की वो टोली थी

बारिश के पानी में फिर वो

कागज की कश्ती थी

बचपन यादों से भरा इक खज़ाना था!


बीता जब बचपन तो हुआ शुरू सफर जवानी का

नादान बचपन हमारा रू-ब-रू हुआ ज़िन्दगी की हकीकत का

दिलों में जुनून को लिए नशा चढ़ा जब जवानी का

चाहत और इश्क में सिलसिला रहा वादों और कसमों का

भ्रम टूटा तो अहसास हुआ फिर

कुछ पूरे कुछ अधूरे रिश्तों का

शुरू हो गया दौर नौकरी और काम धंधों का

आ गया कंधों पर बोझ फिर सारी जिम्मेदारियों का!


जिम्मेदारियों के बोझ तले जवानी के कंधे फिर झुक जाएंगे

गुजर जाएगी जवानी पचपन के जब हो जाएंगे

जोश और स्फूर्ति शरीर की फना तब हो जाएगी

मज़बूत कंधे फिर मजबूर हो जाएंगे

उम्र जब पचपन की आ जाएगी

घुटने कमजोर फिर हो जाएंगे

ना चलने की ताकत तब रहेगी

बचपन की तरह उम्र - ए जवानी ना कभी मुस्कुराएगी

जवानी के हसीन पल फिर ना लौट कर आएंगे

घर के आँगन में कुर्सी पर बैठे

सिर्फ तन्हाई रह जाएगी

हर इक बात पर तर्जुबे की कहानी सुनाई जाएगी

अपनों का सहारा भी तब ना रहेगा

लकड़ी के सहारे चल कर ही बुढ़ापे का ये सफर पूरा हो जाएगा!



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