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Lipika Bhatti

Abstract Children

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Lipika Bhatti

Abstract Children

बचपन की नादानियां

बचपन की नादानियां

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इस गली मोहल्ले में मैंने कितनी करी शैतानियां,

कहां खो गई ना जाने वो बचपन की नादानियां,

मां की डांट से बचाती मेरे भाई की कुर्बानियां,

कहां खो गई ना जाने वह बचपन की नादानियां….


वह बचपन के हाथी घोड़े राजा रानी की जहानियां,

याद आती है मुझको मेरी दादी की कहानियां,

नहीं बुरी लगती थी किसी को मेरी छेड़खानियां,

कहां खो गई ना जाने वह बचपन की नादानियां….


दो लड्डू ज्यादा देते पंडित जी की मेहरबानियां,

आज क्यों दिल है तंग सबके कहां गई वो शाहजहां नियां,

आज तो बस तुम हो मैं हूं और है हमारी प्रेम कहानियां,

कहां खो गई ना जाने वह बचपन की नादानियां….


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