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Prabhawati Sandeep wadwale

Tragedy

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Prabhawati Sandeep wadwale

Tragedy

बचपन गायब हो गया,

बचपन गायब हो गया,

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बचपन गायब हो गया,,,

हाथ से किताब छूट गई,,,

बचपन मे,,,ही

घर की जिम्मेदारी ,

बच्चो के कंधे पे आ गई,,,

मासूमियत गायब हो गई,,,

छोटे बच्चों की,,,जगह,

बाल मजदूरी ने ले ली,,,

बढती महागाई ने,,,

गोर गरीब के,,

हाल बेहाल कर दिए,,

   

बाल मजदूरी,,,

खतम हो के,,,

कोई मददगार आ,,

 जाये गा क्या,,,

हात मेें खुर्प,,,हैं,,,

हात सेे खुरपं निकाल कर,,,

हमारे हाथ में,,,

वही-पेन किताब,,,

देगा क्या,,,

बचपन हमारा ,,,

गायब हो गया है,,

कोई आके लोटा देगा क्या,,,

फिर सेेे हमे बचपन,,,

जीने को मिलेगा क्या,,,

बाल मजदूरी बंद हो के,,,

बचपन जीने को ,,

मिलेगा क्या,,,

हमारा बचपन का

ये हो गया है,,,

कोई वापस ला देगा क्या,,

बचपन हमेशा याद ,,,

रखने का कोई,,,

यादगार पल मिलेगा क्या,,,

चेहरे से मुस्कान चली गई,,,

हात से किताबे चले गई,,,

बचपन की खुशिया चली गई,,,

और,,,

बस रह गई जिम्मेदारीया,,,

कोई तो आजा ओ,,,

बाल मजदूरी बन्द कर दो,,,

बच्चोंं को,,,

दिल खोल के,,,

बचपन जिनेका,,,

हक मिल जाये।



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