बच्चों के ख़ातिर
बच्चों के ख़ातिर
बहाते रहे पसीना ज़िन्दगी भर, भूखे पेट ही सो गए।
त्याग दिए हर सुख अपना, ताकि हम चैन से सो सके।
सहते रहे तक़लीफ़ वे दोनों, हमारी ख़ुशियों की ख़ातिर।
फिर भी मुस्कुराते रहे हमेशा, नहीं बहाए आँखों से नीर।
स्वार्थ से परे सिर्फ़ सोचते रहे, हमारी भलाई दिन रात।
उन्होंने ही तो कराया हमें, सुनहरे सपनों से मुलाक़ात।
लड़ बैठे ज़माने की बुराइयों से, ताकि हम आगे बढ़ सके।
उनके आशीर्वाद से ही, हम सफलता की सीढ़ी चढ़ सके।
मात पिता होते भगवान सम, बच्चों के लिए ही वे जीते।
बच्चों की ख़ुशियों के ख़ातिर, हर सम्भव प्रयत्न वे करते।