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Ajay Singla

Abstract

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Ajay Singla

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बच्चे अब बड़े हो गए हैं

बच्चे अब बड़े हो गए हैं

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जिनको चलना था सिखाया,

वो अपने पांव पे खड़े हो गए हैं,

हम बुड्ढे हो गए हैं,

बच्चे अब बड़े हो गए हैं।


जो जेब खर्च हमसे माँगा करते थे

वो लाखों कमाने लगे हैं,

साइकिल पे पूरा जिनका बचपन बीता,

गाड़ियों में आने लगे हैं।


जिन्हे हमने बच्चा था समझा,

हमको समझाने लगे हैं,

जिनको कंधे पे था बिठाया,

हमारा हाथ बंटाने लगे हैं।


कुछ पल भी जो नहीं रहते थे अकेले,

हफ़्तों बाहर जाने लगे हैं,

अँधेरे से जिनको लगता था डर,

देर रात पार्टी से आने लगे हैं।


जिनके लिए जागते थे रात भर,

हमारी देखभाल करने लगे हैं,

हमारी बीमारी से थोड़ा घबराने

और थोड़ा डरने लगे हैं।


डांटना जिनको अपना हक़ समझते थे,

कभी कभी थोड़ा लड़ने लगे हैं,

जिनको ऐसे ही जड़ देते थे तमाचा,

तकरार भी करने लगे हैं।


थोड़ा समय और तब

इनको भी इस सब से गुजरना होगा,

इनके अपने बच्चे होंगे,

उन के लिए सब कुछ करना होगा।


कभी कभी सोचता हूँ कि

हम सही हैं या वो सही हैं,

शायद जीवन चक्र है, पात्र बदलते हैं,

नाटक और स्टेज वही हैं।


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