बौनी उड़ान
बौनी उड़ान
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बैठे क्यों हो पंथी इस तरह,
अपने हाथ पर हाथ धरकर।
मंजिल को पाओगे फिर कैसे,
सफर से अनवरत यूँ डरकर ।
कोई रोकेगा राह तुम्हारी,
कोई आकर भी चला जायेगा।
कोई चलकर साथ अविराम,
तेरा हमसफर भी कहलायेगा।
मन की लौ को तू यूँ न बुझा,
हरपल खुद को न कुंठित कर।
फैलेगा उजाला तेरे यश का,
श्रमबून्दों से प्रज्ज्वलित कर।
नहीं तो, असफलता की गठरी,
जीवन भर तुम्हें पड़ेगी ढोनी।
तेरे हसीन सपनों की सतरंगी ,
रह जाएगी वह उड़ान बौनी।।