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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

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बौना आदमी

बौना आदमी

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घर से निकलते

ऊंची ऊंची 

इमारतों के बीच से गुजरते हुए,

मुझे खुद के बौने होने का

अहसास होता है,


मगर, 

इन ऊंची इमारतों के

ऊंचे लोगों की कर्कश ध्वनि,

जो गालियों से लिपटी हुई

गेट पर खड़े गार्ड को मिलती है,


तो लगता है 

मैं इन

ऊंची इमारतों के ऊंचे लोगों के

सामने बौना जरूर हूं कद से,

पर संस्कारों की पोटली 

जो मेरे पास है,


उससे इनकी हैसियत 

मेरे सामने

बौनी नजर आती है,

और इन इमारतों में 

रहने वालों की बुलंदियों

और उनकी 

ऊंची ऊंची इमारतों की ऊंचाइयां,


शर्म से झुक जाती है

इस बौने आदमी के कद के सामने।


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