STORYMIRROR

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

4  

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

❣बात प्रीत की ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

❣बात प्रीत की ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

1 min
288


सुने सुनाए बात प्रीत की

जीवन कथा में पग पग बने

सब ऊतम अद्वितीय मित की।।


अपने खून से नौ माह सींचा 

कौन दूूूूसरा यह जननी मेरी माँ

कौन मित उस सा जग में दूसरा

बाहों मेें अपने भींंच भींच 

खीच गई दिल दिमाग में

हर वह रेखा और लेखा

जो बने मेरे संगी,राह दिखाई

मित सच्ची तो तुम हो माँ

तुम बिन मैं होता क्या,कहाँ।।


फिर चमक बिखेरती गहना जैसी

कौन दूूसरी तुम बहना जैसी

तुमसे लङते हम लाडले सारे

पर तुम जीती हर बार हम हारे

तुम तो ठहरी वह गुल

गुलशन रहा खिला खिला

हर मुस्कान पर तुुम्हारे

हम सब सब कुछ वार

मित तुुम सबसे बङे प्यारे।।


चमक बिखेर तुुम संग आई

जीवन संगिनी तुम कहलाई

भरा जीवन हर उस रंग से

जो रहा अद्भूत,अद्वितीय,अनदेखा

संगी तुम्हे हर रूप में पाया

गढी तुमने मेरी हर छाया

मित दूसरा तुमसा ईश फिर न गढवाया।।


तनय तानिया नए नए रूप में

प्रीत के पालनहार हुए

भटक भटक कर जो भी बोया

साथ इन्होने मिलकर ढोया

अलख अभाव में मिलकर रोए

फिर बल से इनके


सब जो हारा, जीत कर लाया

मित बने मझधार मेें सारे

नए रूप में,नए तराने

गाए संंग सब मिल जीत की

सुनो सुनाए बात प्रीत की

जीवन के उन सच्चे मित की।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract