बात हौसलें की है
बात हौसलें की है
हौसले को देखना है तो
सर्कस की रस्सी पर चल रहे
बच्चे को देखिए,
खौफ़ मौत का नहीं आँखों में
बस सवाल घर चलाने का है।
हौसले ग़रीबी-अमीरी के
दायरे नहीं रखते,
आशियाना उन्हीं को मिलता है जो
अपने इरादों पर अटल रहते हैं।
औकात क्या थी चटटानों की
कि वो टूटकर बिखरती नही,
माँझी का हौसला था
जिसने पहाड़ को भी
समतल बना दिया।
जिंदगी मिली है तो
उतार-चढ़ाव भी आयेगे,
मसला तो ये है कि
आपके ख़यालात ये न होने पाए
कि बस यहीं ठहर जाएंगे।