बारिशें
बारिशें
बारिश कैसी लगती है तुम्हें?
मुझे पसंद नहीं
क्यों?
बस यूँही...
आज अचानक फ़िर याद आई वो बारिश..
भीगी सी खड़ी थी एक पुल के नीचे
ढंकती सहेजती ख़ुद को दुपट्टा खींचे
दौड़ता सा आया था
आकर टकराया था
माफ़ी को उसकी निगाहें उठी
एक पल को जैसे साँसे रुकी
यूँ एकटक देखना उसका
दिल भुलाए न भूल सका
ओह तो ये है पहली नज़र का प्यार
जो लगता था मुझे किस्सों का व्यापार
काश कभी न थमे ये बारिश
दोनों की बस एक ही ख़्वाहिश
पर प्यार पे सबकी बंदिशें
क्या ज़माना क्या बारिशें
हल्की फुहारों में बस कदम बढ़ाया था
कि उसके हाथों से हाथ टकराया था
नज़र उसके चेहरे पे लौटायी थी
जिस पर एक मुस्कुराहट पायी थी
अगले पल हम साथ चल रहे थे
जाने कितने ख़्वाब पल रहे थे
तितली के परों सा हसीं वक़्त उड़ता रहा
ख़ूबसूरत यादों का कारवां जुड़ता रहा
एक दिन फिर वो ही बारिश
पर बेमौसम इस बार
दबे पांव आया था वो
उजाड़ने मेरे ख़्वाबों के बाज़ार
बारिशें अब भी आती हैं
आँखों के कोने भिगो लौट जाती हैं

