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बारिश-3

बारिश-3

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चलो इस बारिश कुछ अलग सा करते हैं

सोंधी सी ख़ुशबू से घर लीपते हैं


वो जो रिसने लगी है रिश्तों की दीवारें

जज़्बातों को बारिश में घोल के भरते हैं


नहाता तो बूंदों में है हर कोई

हम उनको पलकों के घर में रखते हैं


उफन जाती हैं जो बारिशों में अक्सर

उन नदियों के पानी में हम डूबते हैं


बोते हैं टूटे हुए रिश्ते की डालों को

नई नस्ल के फूल उनपे खिलाते हैं


चलो इस बारिश कुछ अलग सा करते हैं।



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