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Abhijit Tripathi

Abstract

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Abhijit Tripathi

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बाप की खातिर ताला

बाप की खातिर ताला

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जिन बेटों को बाप ने अपना लहू बेचकर पाला था।।

उन बेटों की कोठी पर उसकी ही खातिर ताला था।।


माँ के ना होने पर बच्चे जब जब रोया करते थे।

उसके ही सीने से लगकर तब तब सोया करते थे।

वो कंधे पर बैठाकर अक्सर मेला उन्हें दिखाता था।

पैसे जेब में ना हों फिर भी उन्हें खिलौने लाता था।

जीवन रस देकर जिनके जीवन में किया उजाला था।।

उन बेटों की कोठी पर उसकी ही खातिर ताला था।।


सुबह काम पे जाकर शाम को वापस आता था।

मेहनत मजदूरी करके दो पैसे रोज कमाता था।

आज जरा सा उसने पैसा अधिक कमाया था।

और बॉस से शायद कुछ बोनस भी पाया था।

बच्चों को जूते लाया जबकि पांव में उसके छाला था।।

उन बेटों की कोठी पर उसकी ही खातिर ताला था।।


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