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Shivanand Chaubey

Drama

3  

Shivanand Chaubey

Drama

बाल मन

बाल मन

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मन गंगा सा पावन निर्मल

ऊर में भाव संजोये चंचल

वात्सल्य में स्नेह के धागे

जैसे पिरोता अपना बालमन 


माँ का आँचल माँ की गोदी

छूट गए सब खेल खिलौने

छूट गयी वो माँ की लोरी

जैसे सपने संजोता बालमन 


छूट गए सब संगी साथी

छूट गए सब बाग़ बगीचे

छूट गयी सब गाँव की गलियां

जैसे यादों में रोता बालमन 


काश की फिर ऐसा हो जाए

मिल जाये वो प्यारा बचपन

अब तक यादों के झरोखे से

जैसे हर पल रोता बालमन 


अब अतीत के पन्नों की यादों में

अंकित और चित्रित बचपन

कहने की बातें बस केवल

धीरे धीरे खोता बालमन।


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