बादलों का उन्माद
बादलों का उन्माद
नदी का गर्मी से वाष्प बनकर,
पवन के झोंकों संग उड़ना,
नील गगन के अंतर्मन में बसना,
बादल बन धरा पर बरसना।।
घुमड़ घुमड़ कर स्वर में गान,
घनघोर घटाओं का तिमिर,
गर्जना से उमड़ते हुए भाव,
काले अंबुद भरते उन्माद।।
कभी-कभी नीले मन भावन,
रिमझिम रिमझिम फुहार लाते,
छटा बिखेरें भर -भर सावन,
प्रियतम को भरमाया मेघा घन ।।
गर्मी में करें शीतल प्रदान,
वसुंधरा की सोंधी महक से,
खेत खलिहान में भरते जान,
हरियाली संपन्नता में है शान।।
बादल के छटने से गगन में,
बने सतरंगी इन्द्रधनुष तान,
उर से प्रफुल्लित हैं तरूवर,
आशीर्वाद जैसे वारीधर।।
