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VEENU AHUJA

Abstract

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VEENU AHUJA

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बादल और मन

बादल और मन

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एक बादल, बाहर उमड़ घुमड़ रहे थे, एक बादल मेरे भीतर ...

बाहर गहराता कालापन आभास करा रहा था कि भरे बादल

कभी भी बरस पड़ेंगे ...


जाने क्यों ? मन भयभीत हो रहा था,

भरे मन के दुःख पट कहीं खुल गए तो ?

आज बादल और मन दोनों के लिए चुप रहना मुश्किल था ..


जानें कब से इनमें पानी संचित हो रहा था ...

बादल धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगें,

शायद पानी भविष्य के लिए इनमें संचित रहेगा ..


कल, कहीं और .. ये बादल हल्के होंगे, ...

पर, ये मन .. यहाँ तो कुआँ है ... पानी का बाहर आना कठिन ...

कोई हो जो इस पानी को बाहर निकाले ?


मन को खोले, भविष्य के लिए संचित न करें ...

अभी खबर आयी .. कहीं बादल फटा ...

वही बादल तो न था ?


अच्छा होता, कल बरस जाता .... I


मन जब डोले,

हृदय किसी से तो बोले,

गहरे होते साये,

जीवन से अघाये,


थोड़ा बरस जाएं,

अपनों को गले लगाएं,

दुनिया की क्यों सुने?

भीतर के संगीत को भीतर ही गुने .... I


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